आजकल बच्‍चों की परवरिश में जो सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है, वो है टेक्‍नोलॉजी और मोबाइल फोन का इस्‍तेमाल

कोरोना के चक्‍कर में घर पर बैठे बच्‍चे दिनभर फोन चलाते रहते हैं। इसका असर न सिर्फ बच्‍चों की सेहत पर पड़ रहा है बल्कि इससे उनकी मेंटल हेल्‍थ भी खराब हो रही है।

अब तो कम उम्र में भी बच्‍चे स्‍मार्टफोन के आदी बन गए हैं। जब आप बच्‍चों से फोन छीनने की कोशिश करते हैं तो वो या तो इसका विद्रोह करते हैं या फिर गुस्‍सा दिखाने लगते हैं।

स्‍मार्टफोन की वजह से बच्‍चों का पढ़ाई में दिमाग नहीं लगता है जबकि यह उम्र याद्दाश्‍त बढ़ाने और मस्तिष्‍क की कोशिकाओं को मजबूती देने के लिए अहम होती है।

मोबाइल के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में सबसे ज्यादा मानसिक बीमारियों (Mental illness) की समस्या देखने को मिल रही हैं।

जब बच्चे मोबाइल को आंखों के बहुत पास रखकर देखते हैं तो आंखों पर बहुत बुरा असर पड़ता है। इससे उनकी पास और दूर दोनों की दृष्टि कमजोर होती है।

बच्चों में मोबाइल लत के बारे में अधिकतर पेरेंट्स गंभीर नहीं होते और यह खतरनाक होता चला जाता है।

यही वजह है कि दुनिया भर में कम उम्र के बच्चे मोबाइल और गैजेट के आदि बन रहे हैं। मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव के कारण बच्चे कई तरह की मानसिक परेशानियों से घिरते जा रहे हैं।

करीब 50 प्रतिशत भारतीय बच्चों जो मोबाइल के बिना नहीं रह पाते हैं, वे रीढ़ की हड्डी में समस्या से पीड़ित हैं।